Monday, September 16, 2019
Gunahgaar - the Guilty
कभी
दिन ढले उसे मेरी कब्र पर देख कर, मुझे ये डर सा लगता है
की
कहीं आज वो पुराने उसी हिसाब की बात ना कर दे
हिसाब
तो आज भी काफी बाकी है उसके एहसानों का,
कहीं
आज उन एहसानों का बोझ हमे पराया ना कर दे
उन एहसानों का कहाँ मुझपर कोई भार था,
क्यूंकि हरेक एहसान तोह बस एक मुक्तलिफ़ सा औजार था
कुछ एहसान तो शायद चुकाए भी थे मैंने,
पर इश्क़ कहाँ एहसानों का बाजार था?
खौफ
तो है उन ज़ख्मों का जो जाने अनजाने में कुछ उधार से रह गए,
जब
दरिया -ए - जिंदगी के सैलाबों में हम कुछ लाचार से रह गए
कयामत
के इन्साफ का तो पता नहीं है यारों,
पर
उसकी नादान नज़रों में हम गुनेहगार से रह गए
क्या उन ज़ख्मों की याद नहीं आती होगी उसको,
क्या ये कब्र उनकी याद नहीं दिलाती होगी
उसको
मौत में भी सुकून ना पाया हमने यारों,
पर क्या वही बात आज भी रुलाती होगी उसको
दरिया
-ऐ -दिल है उसका यह तो मैं भी जानता हूँ,
वक़्त
एक तिलस्मी मरहम है यह मैं भी मानता हूँ
भूल
गई होगी शायद वो उन आंसुओं का दर्द,
पर
उस हरेक आंसू की कीमत तो मैं ही जानता हूँ
बड़ी हसरतों से हमने ये एक आशियाँ बनाया
था
हरेक ख़्वाब को पिरो के ये मकान सजाया था
रह गयी दरारें मेरी गलतियों की इन दीवारों
में काफी
पर हरेक दरार को उसने झरोखा मान के अपनाया
था
चलो
खैर - इन सिलसिलों को हुए ज़माना भी गया बीत
रिश्ता
ये मजबूत सब उलझनों से गया जीत
मशगूल
हम तो हो गए ज़िन्दगी की लहर में
आज
के हर हमले से मेरा कल होता गया अतीत
इस मुकम्मल मेरे रिश्ते की एक दिलकश सी
वजह है
हर अँधेरे की रौशनी है वह, वह मेरी सुबह
है
पर फिर भी कभी दिन ढले उसे मेरी कब्र पर
देख कर लगता है
उन गुनाहों से क्या मेरी ये रूह रिहा है?